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30 days festival - ritual competition -21-Oct-2022 ( 6 ) जन्मआष्ट्मी - कृष्ण लीला



शीर्षक = जन्मआष्ट्मी / कृष्ण लीला




कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे जन्माष्टमी वा गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो विष्णुजी के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्म के आनन्दोत्सव के लिये मनाया जाता है।यह हिंदू चंद्रमण वर्षपद के अनुसार, कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के आठवें दिन (अष्टमी) को भाद्रपद में मनाया जाता है । जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त व सितंबर के साथ अधिव्यापित होता है।


जन्माष्टमी पर्व को भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूरी दुनिया में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्री कृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं, तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा।



भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर्व भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

 

श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के 8वें पुत्र थे। मथुरा नगरी का राजा कंस था, जो कि बहुत अत्याचारी था। उसके अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। एक समय आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसका वध करेगा। यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी को उसके पति वासुदेवसहित काल-कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी के कृष्ण से पहले के 7 बच्चों को मार डाला।

 

जब देवकी ने श्री कृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्री कृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्री कृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।


श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को खासतौर पर सजाया जाता है। जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत का विधान है। जन्माष्टमी पर सभी 12 बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन होता है।


इसी के साथ साथ बहुत सी जगह पर हांडी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन होता है, हांडी में मक्खन, छाछ इत्यादि भरा होता है , जो प्रतियोगी सबसे पहले एक सीमित ऊँचाई पट टंगी मटकी को अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर पहले तोड़ देती है , वो विजयता होती है  और उसे इनाम भेट किया जाता है ।



इसी के साथ जन्मआष्ट्मी के बाद बहुत सी जगहों पर कृष्ण लीला का आयोजन भी किया जाता है , जिसमे कलाकारों द्वारा अभिनय  कर लोगो का मनोरंजन किया जाता है । मेरी भी बहुत सी यादें जुडी हुयी है  जन्मआष्ट्मी के बाद होने वाली कृष्ण लीला के साथ  जो मैं आप लोगो के साथ साँझा करना पसंद करूंगा  


उस अभिनय को देखने के लिए हर रात बहुत से लोगो की भीड़ एकत्रित होती है 


हमारे घर के पीछे भी एक जगह है  जो की कृष्ण लीला के नाम से प्रसिद्ध है , क्यूंकि वहाँ हर साल कृष्ण लीला का आयोजन होता है  जो जन्मास्ठमी से लेकर आने वाले पंद्रह बीस दिनों तक चलता है , जिसमे कलाकारों द्वारा कृष्ण जी की बाल लीलाओ को दिखाया जाता है कि किस तरह उन्होंने अपने मामा कंस का खात्मा किया।


अब तो लोगो के पास समय ही नही है ,और बच्चें भी मोबाइल में व्यस्त हो गए है, लेकिन जब हम छोटे थे  तो हमारे लिए कृष्ण लीला, और राम लीला जैसी चीज़े ही मनोरंजन का साधन हुआ करती थी ।



घर वालो से झूठ बोल कर तो कभी  चोरी छिपकर  कृष्ण लीला देखने जाते थे  अपने दोस्तों के शाद ।


जहाँ कृष्ण लीला लगती थी  उसी के पास एक मस्जिद भी थी , जिसमे हम बच्चें नमाज़ पढ़ने जाते और रात कि नमाज़ के बाद सीधा  कृष्ण लीला देखने चले जाते, और फिर घर लोट कर आकर सौ जाते



इसी तरह आखिर कार वो दिन भी आ जाता जिसका खास कर मुझे बहुत इंतज़ार रहता था, कंस दहन का, मुझे बचपन से ही मेलो, उर्स और कही भी लगने वाली लोकल मार्किट में जाने का बहुत शौक था ।


वहाँ मिलने वाली चाट पकोड़ी का स्वाद बड़े बड़े रेस्टोरेंट में भी नही मिलता।


घर वालो के मना करने के बावज़ूद भी मैने कभी न तो रावण दहन और न ही कभी कंस दहन छोड़ा , घर वाले इसलिए नही रोकते थे  कि वो हमारा त्यौहार नही है , बल्कि इसलिए रोकते थे  क्यूंकि ऐसी जगह पर कुछ ऐसे लोग होते है  जो दूसरों के रंग में भंग डाल देते है , कभी भगदड़ मच जाती है  तो कभी कोई छेड़खानी कि वारदात सामने आ जाती है, और कुछ लोग तो रावण और कंस कि लकड़ी को लेने के लिए ऐसे दौड़ते है मानो वो लकड़ी नही कोई सोना हो 


और माँ को तो हम सब ही जानते है, उसका दिल अपनी औलाद के लिए कितना नर्म होता है ।लेकिन मैं कहा किसी कि बात मानने वाला, जब तक कंस का पुतला पूरा जल कर राख नही हो जाता, वहाँ लगी दुकानों वाले घरों को नही जाने लगते   तब तक घर नही आता था ।

और घर आने से पहले खुद को अम्मी कि डांट खाने के लिए तैयार भी कर लेता था।


बस कुछ इस तरह कि थी मेरी यादें जो कि हमारे घर के पीछे बनी कृष्ण लीला से जुडी हुयी थी ।



30 days festival / ritual competition 




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4 Comments

Gunjan Kamal

29-Oct-2022 06:11 AM

बिल्कुल सही कहा आपने आदरणीय, कुछ उपद्रवी होते हैं जो त्योहार की आड़ में अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। बहुत ही सुन्दर लेखन 👌👏🙏🏻

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shweta soni

29-Oct-2022 02:27 AM

सही कहा आपने मां तो मां हैं वो फ़िक्र करना अब भी नहीं छोड़ती होंगी, आपने बहुत अच्छा लिखा है 👌👌

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Abeer

29-Oct-2022 02:23 AM

Bahut achha likha hai apne 👌

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